बता ग़म-ए-फ़िराक़ पेहले खूं से किस को तर करूं
तुम्हारे लिये Jaana
बता ग़म-ए-फ़िराक़ पेहले खूं से किस को तर करूं
फ़िगार अपना दिल करूं के चाक मैं जिगर करूं
तुम्हारी कम तवज्जो मुझ से केह रही हैं बारहा
तवील दास्तान को मैं अपनी मुख्तसर करूं
अजब नहीं है कुछ मियां गुमान के ये दौर में
ज़मीं की खाक गर कहे के आसमाँ को सर करूं
सबा, दर-ए-हबीब को मेरा पयाम दे ज़रा
के और कब तलक यहाँ मैं खुद को दरबदर करूं
निहाँ निहाँ से नक़्श-ए-यार इंतिहा-ए-शौक़ में
अयाँ अयाँ से लग रहे हैं जिस तरफ नज़र करूं
इसी अमल और उलझनों में रेहता हूँ रवां दवां
मैं उस नज़र के आगे कैसे खुद को मोतबर करूं
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